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मुंबई लोकल में हिंदी बनाम मराठी पर भिड़ीं दो महिलाएं – वायरल वीडियो में गूंजे तीखे शब्द!

मुंबई लोकल में हिंदी बनाम मराठी पर भिड़ीं दो महिलाएं

मुंबई लोकल में हिंदी बनाम मराठी पर भिड़ीं दो महिलाएं

मुंबई लोकल में हिंदी बनाम मराठी पर भिड़ीं दो महिलाएंवायरल वीडियो में गूंजे तीखे शब्द!

बई लोकल ट्रेन, जिसेशहर की लाइफलाइनकहा जाता है, रोज़ लाखों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती है। लेकिन इस बार एक लोकल ट्रेन सफर सुर्खियों में आ गया हैवजह है दो महिलाओं के बीच भाषा को लेकर हुई तीखी बहस। हिंदी बनाम मराठी का मुद्दा एक बार फिर गरमाया है, और इस बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

क्या है पूरा मामला?

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि दो महिलाएं लोकल ट्रेन में सफर कर रही हैं। इनमें से एक महिला हिंदी बोल रही है, जबकि दूसरी महिला उसे टोकते हुए कहती है किमराठी में बोलो, ये महाराष्ट्र है।

यह सुनते ही पहली महिला भड़क जाती है और कहती है, “मैं जहाँ चाहूं, जो भाषा बोलूं, ये मेरा हक है।इसके बाद दोनों के बीच बहस तेज हो जाती है।

वीडियो में दिखता है:

एक महिला जोर देकर कहती है कि हिंदी राष्ट्रभाषा है और किसी को रोका नहीं जा सकता।

दूसरी महिला बारबार कहती है, “ये महाराष्ट्र है, मराठी बोलो।

बहस इतनी बढ़ जाती है कि आसपास का माहौल भी गरम हो जाता है।

लोगों की राय बंटी हुई:

कुछ लोग मराठी महिला का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि स्थानीय भाषा को सम्मान मिलना चाहिए।

वहीं कई लोग हिंदी भाषी महिला के साथ हैं और कह रहे हैं कि भारत में कोई भी किसी भी भाषा में बात कर सकता है।

भाषा बनाम पहचानगहराता विवाद:

ये कोई पहली बार नहीं है जब मुंबई या महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी को लेकर टकराव देखने को मिला हो। इससे पहले भी कई बार बसों, दफ्तरों और ट्रेनों में ऐसे विवाद सामने आए हैं। सवाल उठता है कि क्या भाषा हमारी पहचान से ऊपर हो गई है?

कानूनी और सामाजिक नजरिया:

भारत एक बहुभाषी देश है जहां हर नागरिक को अपनी पसंद की भाषा बोलने का अधिकार है।

लेकिन राज्य स्तर पर लोग अपनी मातृभाषा के सम्मान की भी अपेक्षा करते हैं।

निष्कर्ष:

भाषा संवाद का माध्यम होती है, विवाद का नहीं। मुंबई जैसी महानगरी में जहां अलगअलग राज्यों के लोग रहते हैं, वहां समझदारी, सहनशीलता और एकदूसरे की भाषासंस्कृति का सम्मान बेहद ज़रूरी है।

वीडियो ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया हैक्या हमें भाषा के नाम पर एकदूसरे से भिड़ना चाहिए, या समझदारी से साथ रहना चाहिए?

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