Site icon Modern Patrakaar

मराठा आरक्षण मनोज जारांगे पाटिल पर आर-पार: मुंबई में मराठा शक्ति का प्रदर्शन, जानें दशकों पुराने इस मुद्दे की हर परत

मुंबई के आजाद मैदान में मराठा आरक्षण आंदोलन में शामिल प्रदर्शनकारी

मराठा आरक्षण मनोज जारांगे पाटिल आरक्षण पर आर-पार: मुंबई में मराठा शक्ति का प्रदर्शन, जानें दशकों पुराने इस मुद्दे की हर परत.

मुंबई: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर उबल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटील के नेतृत्व में हजारों मराठा प्रदर्शनकारी मुंबई के आजाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं, जिससे राज्य सरकार पर भारी दबाव बन गया है। यह मुद्दा दशकों पुराना है, जिसकी जड़ें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जटिलताओं में उलझी हुई हैं। आइए जानते हैं कि इस मुद्दे की शुरुआत कब और कैसे हुई, अब तक क्या-क्या हुआ और आज यह किस मोड़ पर खड़ा है।

कैसे शुरू हुआ यह मुद्दा?

मराठा समुदाय, जो महाराष्ट्र की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा है, ऐतिहासिक रूप से एक योद्धा और कृषक समुदाय रहा है। 1980 के दशक में, पहली बार इस समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठी। मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने 1982 में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। उनका तर्क था कि समय के साथ, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, समुदाय के एक बड़े वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। कृषि संकट, बेरोजगारी और शिक्षा के अवसरों की कमी के कारण यह मांग समय-समय पर जोर पकड़ती रही।

अब तक का सफर: कानून, अदालत और आंदोलन

मराठा आरक्षण का मुद्दा कई कानूनी और राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुजरा है।

 * 2014: तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठा समुदाय को 16% और मुस्लिमों को 5% आरक्षण देने का फैसला किया। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।

 * 2018: देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना सरकार ने मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा (SEBC) मानते हुए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण देने के लिए एक कानून बनाया।

 * 2019: बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को तो बरकरार रखा, लेकिन कहा कि 16% आरक्षण उचित नहीं है। कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% करने का निर्देश दिया।

 * 2021: मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां 5 मई 2021 को एक ऐतिहासिक फैसले में, शीर्ष अदालत ने मराठा आरक्षण कानून को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है और मराठा समुदाय को पिछड़ा मानने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं हैं।

आज किस मुद्दे पर हो रही है बात?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, मराठा आरक्षण का आंदोलन एक नए सिरे से शुरू हुआ, जिसका नेतृत्व मनोज जारांगे-पाटील कर रहे हैं। आज की लड़ाई के केंद्र में मुख्य रूप से निम्नलिखित मांगें हैं:

 * कुनबी जाति प्रमाण पत्र: जारांगे-पाटील की सबसे प्रमुख मांग यह है कि सभी मराठाओं को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिया जाए। कुनबी जाति महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची में शामिल है। इस कदम से मराठा समुदाय को मौजूदा ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

 * “सगेसोयरे” का समावेश: प्रदर्शनकारियों की मांग है कि “सगेसोयरे” (खून के रिश्तेदार) को भी कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए, जिससे इसका दायरा और बढ़ सके।

 * अलग से आरक्षण: फरवरी 2024 में, महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और नौकरियों में 10% का एक अलग आरक्षण विधेयक पारित किया। हालांकि, जारांगे-पाटील और उनके समर्थक इस अलग कोटे से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि यह फिर से कानूनी जांच में टिक नहीं पाएगा। वे ओबीसी कोटे के तहत स्थायी समाधान चाहते हैं।

क्या यह सही है या गलत? दोनों पक्षों के तर्क

इस मुद्दे पर समाज और राजनीतिक दल बंटे हुए हैं।

पक्ष में तर्क:

 * सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन: आरक्षण के समर्थक मराठा समुदाय के एक बड़े हिस्से में व्याप्त गरीबी, किसानों की आत्महत्या और शैक्षिक पिछड़ेपन का हवाला देते हैं। उनका तर्क है कि समुदाय को उत्थान के लिए आरक्षण की आवश्यकता है।

 * अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: समर्थकों का यह भी कहना है कि सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में मराठा समुदाय का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में कम है।

विपक्ष में तर्क:

 * आरक्षण की सीमा का उल्लंघन: विरोधी पक्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहता है कि 50% की आरक्षण सीमा को पार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

 * ओबीसी कोटे पर प्रभाव: ओबीसी समुदाय के नेता और संगठन मराठाओं को ओबीसी कोटे में शामिल करने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे उनके आरक्षण का हिस्सा बंट जाएगा और उनके अधिकारों का हनन होगा।

 * राजनीतिक मुद्दा: आलोचकों का यह भी मानना है कि मराठा आरक्षण एक राजनीतिक मुद्दा अधिक है, जहां सभी दल एक बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं।

वर्तमान स्थिति

फिलहाल, मनोज जारांगे पाटील की भूख हड़ताल के कारण मुंबई में राजनीतिक माहौल गर्म है। राज्य सरकार का कहना है कि वह मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वह ओबीसी समुदाय के साथ कोई अन्याय नहीं होने देगी। सरकार ने मामले को देखने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया है और कानूनी ढांचे के भीतर समाधान खोजने का आश्वासन दे रही है। दूसरी ओर, जारांगे-पाटील अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं, जिससे सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच गतिरोध बना हुआ है। यह मुद्दा न केवल एक सामाजिक और कानूनी चुनौती है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति की भविष्य की दिशा भी तय कर सकता है।

एक बयान और दो खेमे! प्रेमानंद महाराज vs जगद्गुरु रामभद्राचार्य, जानिए इस आध्यात्मिक टकराव की पूरी सच्चाई.

 

Exit mobile version