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IND VS PAK शहीदों पर भारी पड़ा करोड़ों का खेल? हमले के बावजूद भारत-पाक मैच को मिली हरी झंडी

IND vs PAK Match: हमले के बावजूद मैच को मंजूरी, क्या 'गेम' से बड़ा है 'नेम'?

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IND VS PAK शहीदों पर भारी पड़ा करोड़ों का खेल? हमले के बावजूद भारत-पाक मैच को मिली हरी झंडी

एक तरफ़ जवानों का ख़ून, दूसरी तरफ़ खेल का जुनून… हमले के बाद भी क्यों हो रहा है भारत-पाक मैच?
नई दिल्ली/दुबई: आज, 14 सितंबर 2025, जब दुबई के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की फ्लडलाइट्स दुनिया के सबसे रोमांचक क्रिकेट मुकाबलों में से एक, भारत-पाकिस्तान मैच पर चमकेंगी, तब करोड़ों भारतीय एक गहरे और असहज सवाल से जूझ रहे होंगे। यह सवाल सिर्फ खेल का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान, संवेदना और सिद्धांत का है। एक तरफ कुछ महीने पहले पहलगाम में हुए आतंकी हमले के घाव अभी भी हरे हैं, जिसमें 26 निर्दोष भारतीय पर्यटकों की जान चली गई थी, और दूसरी तरफ उसी देश के साथ क्रिकेट का जुनून चरम पर है। राष्ट्र के मन में एक ही यक्ष प्रश्न गूंज रहा है: क्या क्रिकेट का रोमांच हमारे शहीदों की शहादत और नागरिकों के खून से बड़ा है?

 

IND VS PAK ​एक तरफ़ जवानों का ख़ून, दूसरी तरफ़ खेल का जुनून… हमले के बाद भी क्यों हो रहा है भारत-पाक मैच?

यह विवाद उस वक्त से ही उबल रहा है, जब से एशिया कप का शेड्यूल जारी हुआ था। लेकिन इसकी असली तपिश 22 अप्रैल को हुए पहलगाम हमले के बाद महसूस की गई, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कायराना हरकत करते हुए Baisaran घाटी में पर्यटकों को निशाना बनाया। इस बर्बर हमले के जवाब में भारत ने 7 मई को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत सीमा पार आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई की। दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। ऐसे माहौल में, जब कूटनीतिक और राजनीतिक संबंध लगभग शून्य हो चुके हैं, क्रिकेट के मैदान पर आमना-सामना कई लोगों को देश की भावनाओं के साथ खिलवाड़ जैसा लग रहा है।
इस मैच के विरोध में सबसे मुखर आवाजें उन परिवारों की हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है। पहलगाम हमले में अपने पिता और भाई को खोने वाली एक पीड़िता ने नम आंखों से कहा, “हमारे जख्म अभी भरे नहीं हैं। जो देश हमारे लोगों की जान लेता है, उसके साथ किसी भी तरह का रिश्ता क्यों? BCCI को उन 26 परिवारों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में शहीद हुए जवानों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था।” यह सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बन गया है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें मैच को “शहीदों का अपमान” बताकर रद्द करने की मांग की गई। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि राष्ट्र की गरिमा और नागरिकों की सुरक्षा, मनोरंजन से कहीं बढ़कर है।

राजनीतिक गलियारों में भी इस मैच को लेकर घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस, शिवसेना (UBT), और AIMIM समेत कई विपक्षी दलों ने सरकार और BCCI को घेरा है। विपक्ष ने प्रधानमंत्री के पुराने बयान, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते,” की याद दिलाते हुए सवाल किया कि अगर खून और पानी साथ नहीं बह सकते, तो खून और क्रिकेट का खेल एक साथ कैसे हो सकता है? इसे “देशद्रोह” और “शर्मनाक” तक कहा गया। सोशल मीडिया पर #BoycottIndPakMatch और #ShameOnBCCI जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जो जनता के एक बड़े वर्ग के गुस्से को दर्शाते हैं। लोगों का सवाल सीधा है – जब हम पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के लिए घेरने की कोशिश कर रहे हैं, तो क्रिकेट के मैदान पर उसके साथ खेलकर उसे वैधता और सामान्य स्थिति का एहसास क्यों कराएं?
हालांकि, इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जो खेल प्रशासन की मजबूरियों और सरकार की जटिल नीतियों को सामने रखता है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और सरकारी सूत्रों का तर्क है कि यह द्विपक्षीय श्रृंखला नहीं है, बल्कि एक बहु-राष्ट्रीय टूर्नामेंट (एशिया कप) है। IPL चेयरमैन अरुण धूमल और BCCI के सचिव देवजीत सैकिया ने स्पष्ट किया है कि भारत सरकार की नीति पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सीरीज न खेलने की है, लेकिन ICC और ACC जैसे टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेना अनिवार्य है।

इसके पीछे कई व्यावहारिक कारण गिनाए जा रहे हैं। पहला, मैच का बहिष्कार करने पर भारत को न केवल अंक गंवाने पड़ेंगे, बल्कि उस पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) द्वारा प्रतिबंध या भारी जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इससे भविष्य में खिलाड़ियों के करियर पर भी असर पड़ सकता है। दूसरा, भारत 2036 ओलंपिक की मेजबानी के लिए दावेदारी कर रहा है। ऐसे में किसी भी अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन का बहिष्कार करने से भारत की छवि एक गैर-जिम्मेदार खेल राष्ट्र की बन सकती है, जो उसकी दावेदारी को कमजोर करेगा।
इन आधिकारिक तर्कों के अलावा एक अनकहा लेकिन सबसे शक्तिशाली तर्क अर्थशास्त्र का है। भारत-पाकिस्तान मैच क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा व्यावसायिक उत्पाद है। ब्रॉडकास्टिंग अधिकार, विज्ञापन और प्रायोजन से हजारों करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न होता है। आलोचकों का कहना है कि इसी “करोड़ों के खेल” के दबाव में राष्ट्रीय भावनाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। उनका आरोप है कि वित्तीय हितों को शहीदों के सम्मान से ऊपर रख दिया गया है।

इस पूरे विवाद के बीच, आज जब रोहित शर्मा और बाबर आजम टॉस के लिए मैदान पर उतरेंगे, तो यह सिर्फ एक क्रिकेट मैच नहीं होगा। यह भावनाओं, सिद्धांतों, मजबूरियों और अर्थशास्त्र का एक जटिल कॉकटेल होगा। यह मैच भारत की उस दुविधा का प्रतीक होगा, जहां एक ओर आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय खेल जगत की प्रतिबद्धताएं और व्यावसायिक वास्तविकताएं हैं। मैदान पर हर चौके और छक्के पर तालियां तो बजेंगी, लेकिन शायद हर ताली के पीछे एक सवाल भी छिपा होगा – क्या हम सही कर रहे हैं? आज का मैच चाहे कोई भी जीते, यह बहस शायद लंबे समय तक जारी रहेगी कि खेल और राजनीति को अलग रखा जाना चाहिए या नहीं, खासकर जब सामने वो देश हो जिसकी धरती से बहे खून के धब्बे अभी सूखे भी न हों।

 

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