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BMC ने दादर कबूतरखाना पर कार्रवाई क्यों? कबूतरों से फैलने वाली गंभीर बीमारियां और स्वास्थ्य संकट का सच-Pigeon Breeder’s Lung

BMC ने दादर कबूतरखाना पर कार्रवाई क्यों? कबूतरों से फैलने वाली गंभीर बीमारियां और स्वास्थ्य संकट का सच-Pigeon Breeder’s Lung

BMC ने दादर कबूतरखाना पर कार्रवाई क्यों? कबूतरों से फैलने वाली गंभीर बीमारियां और स्वास्थ्य संकट का सच-Pigeon Breeder’s Lung

 

BMC ने दादर कबूतरखाना पर कार्रवाई क्यों? कबूतरों से फैलने वाली गंभीर बीमारियां और स्वास्थ्य संकट का सच

 

मुंबई में दादर के कबूतरखाना को बंद करने की हालिया कार्रवाई ने कई लोगों को हैरान किया है, लेकिन इस फैसले के पीछे एक बड़ा और गंभीर कारण छिपा है: सार्वजनिक स्वास्थ्य. दशकों से चली आ रही कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा अब एक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है. बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) और बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस खतरे को पहचानते हुए यह कड़ा कदम उठाया है. लोग अकसर कबूतरों को दाना खिलाने को एक नेक काम मानते हैं, लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि उनके ऐसा करने से कबूतरों की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ रही है, और उनके मल, पंखों और धूल से कई जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं. इन बीमारियों का सीधा असर हमारे फेफड़ों और तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है, जिससे जिंदगी भर का जोखिम पैदा हो सकता है.

इस खतरे का सबसे प्रमुख उदाहरण है हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (Hypersensitivity Pneumonitis), जिसे आम भाषा में “पिजोन ब्रीडर लंग” (Pigeon Breeder’s Lung) या “बर्ड फैन्सियर डिजीज” कहा जाता है. यह बीमारी तब होती है जब कोई व्यक्ति कबूतरों के मल और पंखों से निकलने वाले सूक्ष्म कणों (एंटीजन) को सांस के जरिए अंदर लेता है. ये कण फेफड़ों में पहुंचकर एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया पैदा करते हैं, जिससे फेफड़ों में सूजन आ जाती है. शुरुआत में इसके लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं, जैसे खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ और थकान. लेकिन अगर यह संपर्क लंबे समय तक बना रहे, तो यह बीमारी क्रोनिक (पुरानी) हो जाती है. क्रोनिक पिजोन ब्रीडर लंग में फेफड़ों में स्थायी रूप से फाइब्रोसिस (Fibrosis) यानी घाव बनने शुरू हो जाते हैं. ये घाव फेफड़ों की कार्यक्षमता को धीरे-धीरे कम कर देते हैं, जिससे सांस लेना और भी मुश्किल हो जाता है. एक समय ऐसा आता है जब फेफड़े शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं दे पाते, जिससे मरीज को बाहरी ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ सकती है. यह बीमारी फेफड़ों को अपरिवर्तनीय (irreversible) क्षति पहुंचा सकती है, यानी एक बार नुकसान हो जाने पर इसे ठीक करना लगभग असंभव हो जाता है.

कबूतरों के मल से सिर्फ यह एक बीमारी नहीं, बल्कि कई और फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण भी फैलते हैं. इनमें से एक है हिस्टोप्लास्मोसिस (Histoplasmosis), जो हिस्टोप्लाज्मा कैप्सुलैटम (Histoplasma capsulatum) नामक फंगस से होता है. यह फंगस कबूतरों के मल और मिट्टी में पाया जाता है. जब लोग इस दूषित मिट्टी या मल की धूल में सांस लेते हैं, तो फंगस के बीजाणु (spores) शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. अधिकांश लोगों को कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों या बच्चों में यह गंभीर रूप ले सकता है. इसके लक्षणों में बुखार, खांसी, थकान और सीने में दर्द शामिल हैं. गंभीर मामलों में यह फंगस शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है, जिससे एड्रेनल ग्रंथि (adrenal gland) और यहां तक कि दिमाग भी प्रभावित हो सकता है.

एक और खतरनाक फंगल संक्रमण है क्रिप्टोकोकोसिस (Cryptococcosis), जो क्रिप्टोकॉकस नियोफॉर्मन्स (Cryptococcus neoformans) नामक फंगस से फैलता है. यह फंगस भी कबूतरों के मल में पाया जाता है. अगर यह फंगस सांस के जरिए शरीर में चला जाए, तो यह सबसे पहले फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका सबसे गंभीर रूप तब होता है जब यह दिमाग और रीढ़ की हड्डी के आसपास के ऊतकों तक पहुंच जाता है, जिससे क्रिप्टोकोकल मैनिंजाइटिस (Cryptococcal Meningitis) नामक जानलेवा बीमारी हो सकती है. इसके लक्षणों में तेज सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, बुखार, और भ्रम की स्थिति शामिल है. स्वस्थ लोगों में इसका खतरा कम होता है, लेकिन HIV/AIDS के मरीज, कैंसर के मरीज या अंग प्रत्यारोपण (organ transplant) कराने वाले लोगों के लिए यह अत्यधिक जोखिम भरा होता है.

इसके अलावा, कबूतरों के मल से सिटाकोसिस (Psittacosis) नामक बैक्टीरियल बीमारी भी फैल सकती है. यह क्लैमाइडिया सिटासी (Chlamydia psittaci) नामक बैक्टीरिया से होती है, जो कबूतरों के सूखे मल और पंखों में पाया जाता है. इसके लक्षण फ्लू जैसे होते हैं, जिनमें बुखार, सिरदर्द, सूखी खांसी, और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं. यह बीमारी फेफड़ों में निमोनिया का कारण बन सकती है और दुर्लभ मामलों में यह जानलेवा भी हो सकती है.

कबूतरों से फैलने वाले ये रोग सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि कई अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. कबूतरों के मल और घोंसलों में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े और परजीवी भी इंसानों तक पहुंच सकते हैं, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं और अन्य संक्रमण हो सकते हैं.

दादर जैसे कबूतरखाने सिर्फ एक धार्मिक या भावनात्मक आस्था का केंद्र नहीं हैं, बल्कि ये एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का केंद्र भी बन गए हैं. हवा में उड़ने वाली कबूतरों की बीट की धूल लोगों को अनजाने में बीमार कर रही है. यह उन लोगों के लिए और भी खतरनाक है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से कमजोर है. BMC की यह कार्रवाई भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि मुंबईकरों को एक अदृश्य और गंभीर खतरे से बचाने के लिए है. इसलिए, यह जरूरी है कि लोग इस कार्रवाई को समझें और कबूतरों को सार्वजनिक जगहों पर दाना खिलाने से बचें, ताकि सभी स्वस्थ और सुरक्षित रह सकें. यह करुणा का नहीं, बल्कि जागरूकता और जिम्मेदारी का विषय है.

मुंबई: दादर कबूतरखाना पर आखिरकार प्लास्टिक शीट, सेहत के लिए ज़रूरी कदम BMC की कार्रवाई…..

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