ठाकरे बंधुओं की एकता को स्टालिन का समर्थन, बोले – भाषा नहीं, जबरन थोपना है मुद्दा
चेन्नई/मुंबई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) प्रमुख एमके स्टालिन ने महाराष्ट्र में ठाकरे चचेरे भाइयों, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ एक साथ आने का गर्मजोशी से स्वागत किया है।1 स्टालिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यह मुद्दा किसी भाषा विशेष का नहीं, बल्कि जबरन थोपने की कोशिश का है, जिसे भारत के भाषाई विविधता वाले संघीय ढांचे में स्वीकार नहीं किया जा सकता।2
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के आदेश को जनता के विरोध के बाद वापस ले लिया गया था। इसके बाद उद्धव और राज ठाकरे ने मुंबई में ‘मराठी विजय’ रैली का आयोजन किया, जिसमें वे लगभग दो दशकों बाद एक ही मंच पर नजर आए। इस एकजुटता ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है और भाषाई पहचान की राजनीति को एक नया आयाम दिया है।
एमके स्टालिन ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “आज मुंबई में भाई उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में हिंदी ‘थोपने’ के खिलाफ हुई ‘विजय रैली’ में जोशीले भाषणों और जनज्वार ने हमें बेहद उत्साहित किया है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी लड़ाई हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं है, बल्कि किसी भी भाषा को जबरन थोपने के खिलाफ है, खासकर उन राज्यों पर जहां क्षेत्रीय भाषाएँ अपनी मजबूत पहचान रखती हैं।3
स्टालिन ने केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह हिंदी और संस्कृत के प्रचार-प्रसार में लगी हुई है और क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व को कम आंक रही है।4 उन्होंने कहा कि राज ठाकरे के तीखे सवालों का भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है। स्टालिन ने याद दिलाया कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने पर ही फंड देने की शर्त रखी थी, जिसे उन्होंने ‘हिंदी थोपने का एक और प्रयास’ बताया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जनता के आक्रोश ने भाजपा को अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया।
डीएमके नेता ने कहा कि महाराष्ट्र में उठी यह आवाज उन लोगों के लिए एक सबक है, जो बिना सोचे-समझे यह दावा करते हैं कि ‘हिंदी सीखने से नौकरी मिलेगी’। उन्होंने भाजपा से तमिलनाडु और तमिल भाषा के साथ किए गए ‘विश्वासघात’ के लिए प्रायश्चित करने का आह्वान किया और चेतावनी दी कि यदि भाजपा अपनी नीतियों में सुधार नहीं करती है, तो तमिलनाडु एक बार फिर उन्हें ऐसा सबक सिखाएगा जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे।
स्टालिन ने एकजुटता का आह्वान करते हुए कहा, “तमिलनाडु लड़ेगा, तमिलनाडु जीतेगा।” यह बयान दर्शाता है कि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य अब भाषाई पहचान के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं, जो केंद्र सरकार की भाषाई नीतियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। ठाकरे बंधुओं का एक साथ आना और उसे स्टालिन का समर्थन मिलना, भारत के संघीय ढांचे में क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान और संरक्षण की बढ़ती मांग को रेखांकित करता है।
BJP की प्रतिक्रिया
नारायण राणे (केंद्रीय मंत्री) ने इस रैली को “जिहादी सभा” और “हिंदू विरोधी” बताया।
बीजेपी ने आरोप लगाया कि ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर हिंदुत्व की राजनीति से भटक रहे हैं।
इस विरोध रैली में राज–उद्धव की एकता केवल मराठी अस्मिता की लड़ाई नहीं है, बल्कि आने वाले बीएमसी चुनाव में राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है
मराठी भाषा को जबरन थोपे जाने के खिलाफ उठी आवाज़ सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रही — यह अब दक्षिण भारत तक भी पहुंच चुकी है। ठाकरे बंधुओं की एकता और स्टालिन का समर्थन इस आंदोलन को राष्ट्रीय बहुभाषिकता के कैंपेन के रूप में प्रस्तुत करता है।
मुंबई और बीएमसी इलेक्शन कनेक्शन
BMC (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) एशिया की सबसे अमीर म्युनिसिपल बॉडी है।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और MNS का गठजोड़ होने पर यह बीजेपी के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
इस मुद्दे के जरिए दोनों दलों ने भावनात्मक मुद्दे (भाषा) को राजनीतिक फायदों से जोड़ने की कोशिश की है।
राष्ट्रव्यापी प्रभाव
इस मुद्दे ने दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम भारत तक की राजनीति में भाषा को केंद्र में ला दिया है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि ऐसे क्षेत्रीय गठबंधन बनते रहे, तो 2029 के आम चुनाव में ‘One India, One Language’ जैसी नीतियों को कड़ी चुनौती मिल सकती है।